सुबह की चाय की प्याली
से उड़ती कुनकुनी भाप
जब ठहर जाती मेरे चश्मे पर
धुंधला सा देने लगता दिखाई
पर छूट ना पाती हाथ से प्याली
दोस्ती की प्याली भी ना छूट पायी अब तक
जब धुंधला सी गयी है यादों की तख्ती
क्योंकि पता है जब भाप होगी ठंडी
तब चल पड़ेगी यारों की कश्ती
---सुरभि
Öbrìgadò!