धूल की चादर ओढ़े मेरी पुरानी साइकिल
यूँ तांक रही थी मेरी राह
जैसे गांव में बैठे बूढ़े बाबा
सी रहे थे अपने परदेसी बेटे के आने की राह
मेरे कदमों की आहट पहचान
बिजली सी दौड़ी उसके ज़ेहन में
फिर भी बूत बनी खड़ी रही
धूल से चुप्पी ढ़की रही
दुबक के बैठी थी कोने में
मन मार रहा था झूम के हिलोरें
बरसों बाद लौटी थी उसकी सवारी
लेकर साथ अपने एक मोटर गाड़ी
डाली जब उसने एक नज़र अपने ऊपर
पाया खुद को बिलकुल धूल ग्रस्त
पंक्चर टायर, उखड़ा पेंट, फटी सीट
रुआंसी सी हो गयी बेचारी
अब कौन करना चाहेगा उसकी सवारी ?
थक कर जब मैं लेटी खटिया पर
नज़र टिकी उस धूल भरे ढांचे पर
कौतुहल में देखा पास जाके
सकुचाई सी खड़ी थी मेरी साइकिल
बल्लियों उछल रहे थे हम दोनों
अरसों बाद आज फिर मिल रहे थे
लगा ली आज फिर गिलहरी से रेस
छोड़ के पीछे मोटर - भैंस J