Sunday

उस पार

उठा यादों का बस्ता  
चल पड़ा मैं वही रस्ता
जहाँ चाय की चुस्की 
में छुपी थी मेरी ख़ुशी 
ख़ुशी रोज़ उससे मिलने की
जी भर के बतियाने की 
हवा में ख्वाबों को बुनने की            


रस्ता नहीं बदला पर शायद वक्त बदल गया 
वक़्त के साथ हम बदल गए 
और हमारे साथ ख़ुशी के मायने भी 
दो आने के कंचों से ऊँचे मंचो तक पहुँचने की होड़ 
और तभी पीछे छूट गयी हमारी वो प्यारी सी हँसी 

फेसबुक व्हाट्सएप्प पे ढूंढने लगे बिछड़े यारों को 
पर अब सब कुछ सिर्फ लाइक्स और कमैंट्स तक ही सिमट गया
खोया यार मिलके भी मिल न पाया 
और मैं चाह कर भी उसे याद दिला न पाया

उसकी जिंदादिली और बेकार चुटकुले ही तो थे 
जो मुझे खींचकर वापिस उस तक लाये थे 
पर जैसे वो समय से रेस लगाने में लगा हुआ है
अपनी ख़ुशी छोड़ दूसरों को खुश करने में लगा हुआ है  

देख कर बदला यार 
न जाना चाहा मैंने उस पार
उठा अपना बस्ता 
टटोला यादों का गुलदस्ता 
देख जहाँ अपना पुराना यार 
जाना चाहा मैंने फिर उस पार


Gracias!
 

5 comments:

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