Tuesday

रे मन



रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल    
कभी इधर भागे , कभी उधर भागे 
एक जगह बैठ न तू पावै

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
क्षण - प्रतिक्षण छलांग लगाए 
हर पल यूँ हिलोरे खाए 
तृष्णा की नैया में बस तू तैरता ही जावै

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
अभी यह चाहे, कल वो चाहे 
हर पल चाह की सूचि तू बनाता ही जावै

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
रमता रहे तू भूत - भविष्य 
आज में तू कभी स्थिर न हो पावै 

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
पूरी - पकवान चाहे तू कितना ही खावै
भोग - विलास से तू उभर न पावै 

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
तू कितना अधीर , ज़रा भी धीर न धरे 
बस चाहे पूरी होवै तेरी हर इच्छा 

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
देख परायी ख़ुशी , चाहे तू भी वही ख़ुशी 
और इसी ख़ुशी की होड़ में 
बंधता तू चला जाये दुःख की डोर में 

रे मन ! तू कितना चपल , कितना चंचल
काहै न तू  धीर धरे ?
काहै  न तू पीर हरे ?

--- सुरभि बाफना