धुंधली तख्ती
सुबह की चाय की प्याली
से उड़ती कुनकुनी भाप
जब ठहर जाती मेरे चश्मे पर
धुंधला सा देने लगता दिखाई
पर छूट ना पाती हाथ से प्याली
दोस्ती की प्याली भी ना छूट पायी अब तक
जब धुंधला सी गयी है यादों की तख्ती
क्योंकि पता है जब भाप होगी ठंडी
तब चल पड़ेगी यारों की कश्ती
---सुरभि
Öbrìgadò!
गजब !
ReplyDeleteशब्दों में पिरोई दोस्ती ��
वाह क्या बात है जी कमाल की यादों की तख्ती ..बिलकुल सपने सरीखी ..आपका ब्लॉग बेहद खूबसूरत है
ReplyDeleteWhat you're saying is completely true. I know that everybody must say the same thing, but I just think that you put it in a way that everyone can understand. I'm sure you'll reach so many people with what you've got to say.
ReplyDeleteGreat article, Thanks for your great information, the content is quiet interesting. I will be waiting for your next post.
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