Friday

छोटी -बड़ी जिंदगी


कहते है बहुत बड़ी है ये जिंदगी 
पर है बहुत छोटी

लम्बी इतनी कि बच्चे से बूढ़े बन जाए 
और छोटी इतनी कि बचपन की यादें आज भी हँसा जाए 

लम्बी इतनी कि बाल तक सफ़ेद हो जाए 
और छोटी इतनी कि शाम तक दाढ़ी उग आये 

लम्बी इतनी कि स्कूल कॉलेज ऑफिस सब में हो आये 
और छोटी इतनी कि एक प्याली चाय की सुकून से भी ना पी पाए 

लम्बी इतनी कि साथ के लिए एक हमदम ले आये
और छोटी इतनी कि उसका ठीक से साथ भी ना निभा पाए 

लम्बी इतनी कि सैकड़ों शुभचिंतको से मिल आये 
और छोटी इतनी कि नए पडोसी से मिल भी ना पाए 

लम्बी इतनी कि पैसो की बोरी भर जाए 
और छोटी इतनी कि उस पैसे से ख़ुशी न खरीद पाए 

लम्बी इतनी कि पोते - पोती के साथ खेलने लगे 
और छोटी इतनी कि बेटे - बेटी से दो लफ्ज़ भी ना कह पाए 

लम्बी इतनी कि पेटी भर ली कपड़ो से 
और छोटी इतनी की सारे भी ना पहन पाए 

लम्बी इतनी की भर -भर के दान दे आये 
और छोटी इतनी कि नुक्कड़ पे उस बूढ़े की मदद भी ना कर पाए 

लम्बी इतनी कि दांत भी गिर गए 
और छोटी इतनी कि उनसे एक गन्ना भी ना खा पाए 

लम्बी इतनी कि पूरी दुनिया घूम आये 
और छोटी इतनी कि अपने ही घर ना जा पाए 

जनाब ! अब आप ही बताएं कैसी है ये जिंदगी ?


Gracias!
 

4 comments:

  1. Achhi kavita h....

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  2. Such a beautiful piece !

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  3. well said...
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  4. Awesome and interesting article. Great things you've always shared with us. Thanks. Just continue composing this kind of post.

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